वात, पित्त और कफ दोष के लोगों को इन बीमारियों से ज्यादा होता है खतरा

वात, पित्त और कफ दोष के लोगों को इन बीमारियों से ज्यादा होता है खतरा

सेहतराग टीम

व्यक्ति एक विशिष्ट संयोजन से बना होता है। जिसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता। उसे सिर्फ संतुलित किया जा सकता है। सूखा, रुखा, ठंडा, तीखा, कड़वा और कड़वा भोजन लेने पर वात में वद्धि होती है। यदि पित्त प्रकृतिवाला व्यक्ति गरम जलवायु में तीखा, खट्टा तथा नमकीन भोजन करेगा तो वह अपने आपको अस्वस्थ महसूस करेगा। कफ प्रकृतिवाले व्यक्ति को स्वस्थ रहने के लिए ठंडा भोजन, ठंडी जलवायु, आलस्य तथा अधिक मात्रा में मिठाइयां खाने की प्रव़ति को बदल देना चाहिए। एक व्यक्ति में तीनों दोष विधमान होते हैं, पर उनमें से एक प्रभावी होता है। इन दोषों के मनोवैज्ञानिक लक्षण भी होते हैं।

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वात दोषवाले लोग अक्सर कब्ज के शिकार रहते हैं। यह अन्य दोनों दोषों का कारण भी हो सकता है। जब ये दोष कुपित हो जाते हैं तो व्यक्ति मानसिक तथा शारीरिक विकारों से ग्रस्त हो जाता है। आइए जानते हैं किस दोष में कौन सी बीमारियां हो ज्यादा हो सकती हैं।

वात प्रकृति के लोग इन बीमारियों के शिकार हो सकते हैं।

1- लगातार कब्ज बनी रहना।

2- बेचैनी और न्यूरोसिस (हल्का मानसिक विकार)

3- अवसाद (डिप्रेशन)

4- लगातार दर्द रहना।

5- मांसपेशियों में मरोड़।

6- हाई ब्लड प्रेशर।

7- आंत प्रदाह (इरिटेबल कोलोन सिंड्रोम)

8- रजोनिवृत्ति संबंधी परेशानियां।

9- पीड़ा युक्त मासिक धर्म।

10- मासिक धर्म से पहले का तनाव।

पित्त प्रकृति के लोग इन बीमारियों के शिकार हो सकते हैं।

1- पेप्टिक अल्सर, गैस्ट्रिक, आंत का अल्सर।

2- त्वचा पर चकत्ते।

3- विटामिन ए की कमी के कारण आंखों की दृष्टि कमजोर होना।

4- अम्लता (एसिडिटी) के कारण हृदय (हार्ट) में जलन होना।

5- बालों का गिरना।

6- तनाव के कारण हार्ट अटैक का खतरा।

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कफ दोष के लोगों को इन बीमारियों का खतरा।

1- सर्दी

2- मोटापा

3- डायबिटीज (शुगर)

4- आर्थराइटिस-रूमेटायड (गठिया)

5- दमा

6- एलर्जी वाली बीमारियों का खतरा जैसे- खांसी , दमा।

7- हाई (ज्यादा) कोलेस्ट्रॉल।

8- छाती, साइनस में जकड़न।

9- अपच, भूख न लगना।

10- शरीर में भारीपन।

11- अत्यधिक नींद और आलस्य या सुस्ती।

(य़ह आलेख टी. एल. देवराज द्रवारा लिखी गयी किताब आयुर्वेद और स्वस्थ जीवन से साभार लिय़ा गया है)

 

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